Sunday, September 15, 2024

विश्वकर्मा जी के 108 नाम

 भगवान विश्वकर्मा जी के 108 नाम उनके विभिन्न गुणों, क्षमताओं और दिव्यता को दर्शाते हैं। यहाँ विश्वकर्मा जी के 108 पवित्र नामों की सूची दी गई है:


1. ॐ विश्वकर्मणे नमः  

2. ॐ विश्वाय नमः  

3. ॐ विश्वेश्वराय नमः  

4. ॐ विश्वात्मने नमः  

5. ॐ विश्वसृजे नमः  

6. ॐ विश्वधारिणे नमः  

7. ॐ विश्वपर्वताय नमः  

8. ॐ विश्वरूपाय नमः  

9. ॐ विश्वकर्मकृते नमः  

10. ॐ विश्ववेद्याय नमः  

11. ॐ विश्वज्ञाय नमः  

12. ॐ विश्ववसवे नमः  

13. ॐ विश्वकर्मस्मृतये नमः  

14. ॐ विश्वविघ्नहराय नमः  

15. ॐ विश्वधातृणे नमः  

16. ॐ विश्वगोप्त्रे नमः  

17. ॐ विश्वभोक्त्रे नमः  

18. ॐ विश्वपालकाय नमः  

19. ॐ विश्वकर्मदेवाय नमः  

20. ॐ विश्वभर्त्रे नमः  

21. ॐ विश्वमूर्तये नमः  

22. ॐ विश्वानंदाय नमः  

23. ॐ विश्ववर्धकाय नमः  

24. ॐ विश्वकारकाय नमः  

25. ॐ विश्वरूपधराय नमः  

26. ॐ विश्वविक्रमाय नमः  

27. ॐ विश्वलोचनाय नमः  

28. ॐ विश्वश्रेयसे नमः  

29. ॐ विश्वाराध्याय नमः  

30. ॐ विश्वसिद्धाय नमः  

31. ॐ विश्वहस्ताय नमः  

32. ॐ विश्वसाक्षिणे नमः  

33. ॐ विश्वतेजसे नमः  

34. ॐ विश्वज्ञानाय नमः  

35. ॐ विश्वरूपाय नमः  

36. ॐ विश्वबुद्धये नमः  

37. ॐ विश्वदर्शिनाय नमः  

38. ॐ विश्वसंसाराय नमः  

39. ॐ विश्वज्ञप्तये नमः  

40. ॐ विश्वतत्त्वज्ञाय नमः  

41. ॐ विश्वधुरंधराय नमः  

42. ॐ विश्वनायकाय नमः  

43. ॐ विश्वमंत्रिणे नमः  

44. ॐ विश्ववर्त्मने नमः  

45. ॐ विश्वयज्ञाय नमः  

46. ॐ विश्वपृष्ठाय नमः  

47. ॐ विश्वसंज्ञकाय नमः  

48. ॐ विश्वनाथाय नमः  

49. ॐ विश्वाराधकाय नमः  

50. ॐ विश्वविभवाय नमः  

51. ॐ विश्वयंत्राय नमः  

52. ॐ विश्वशक्तये नमः  

53. ॐ विश्वभवाय नमः  

54. ॐ विश्वेन्द्राय नमः  

55. ॐ विश्वाविराय नमः  

56. ॐ विश्वगम्याय नमः  

57. ॐ विश्वबाहवे नमः  

58. ॐ विश्वविष्णवे नमः  

59. ॐ विश्वारूपाय नमः  

60. ॐ विश्वकर्मरूपाय नमः  

61. ॐ विश्वसमर्थाय नमः  

62. ॐ विश्वपालकाय नमः  

63. ॐ विश्वमहेश्वराय नमः  

64. ॐ विश्वनारायणाय नमः  

65. ॐ विश्वजिते नमः  

66. ॐ विश्वमित्राय नमः  

67. ॐ विश्वदयालवे नमः  

68. ॐ विश्वदानवे नमः  

69. ॐ विश्वकराय नमः  

70. ॐ विश्ववेदने नमः  

71. ॐ विश्वव्रताय नमः  

72. ॐ विश्वकर्त्रे नमः  

73. ॐ विश्वसृजे नमः  

74. ॐ विश्वाधिपाय नमः  

75. ॐ विश्वसाधकाय नमः  

76. ॐ विश्वश्रेयसे नमः  

77. ॐ विश्वशांतये नमः  

78. ॐ विश्वदानिने नमः  

79. ॐ विश्वाराध्याय नमः  

80. ॐ विश्वशांताय नमः  

81. ॐ विश्वशत्रवे नमः  

82. ॐ विश्वपालकाय नमः  

83. ॐ विश्वकर्ता नमः  

84. ॐ विश्वकर्माय नमः  

85. ॐ विश्वपावनाय नमः  

86. ॐ विश्वलोकपालकाय नमः  

87. ॐ विश्वधर्माय नमः  

88. ॐ विश्वभावाय नमः  

89. ॐ विश्वश्रीधराय नमः  

90. ॐ विश्वराजाय नमः  

91. ॐ विश्वस्तवाय नमः  

92. ॐ विश्वदर्पहाय नमः  

93. ॐ विश्वबलाय नमः  

94. ॐ विश्ववर्षाय नमः  

95. ॐ विश्वकारकाय नमः  

96. ॐ विश्वाराधनाय नमः  

97. ॐ विश्वनिष्ठाय नमः  

98. ॐ विश्वशौर्याय नमः  

99. ॐ विश्वजिते नमः  

100. ॐ विश्वराधकाय नमः  

101. ॐ विश्वकाय नमः  

102. ॐ विश्वमूर्तये नमः  

103. ॐ विश्वसर्वज्ञाय नमः  

104. ॐ विश्वमंगलाय नमः  

105. ॐ विश्वकांताय नमः  

106. ॐ विश्वनाथाय नमः  

107. ॐ विश्वविभवाय नमः  

108. ॐ विश्वहृदयाय नमः  


भगवान विश्वकर्मा जी के इन नामों का उच्चारण, हवन या पूजा के समय करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

Saturday, August 10, 2024

रुद्राभिषेक पूजन सामग्री

 ‘सामग्री’ ‘मात्रा’ सामग्री’ ‘मात्रा’

रोली 10 ग्राम मिष्ठान 500 ग्राम

पीला सिंदूर 10 ग्राम पान के पत्ते (समूचे) 21 पीस

पीला अष्टगंध चंदन 10 ग्राम आम के पत्ते 2 डंठल

लाल चन्दन 10 ग्राम ऋतु फल 5 प्रकार के

सफेद चंदन 10 ग्राम दूब घास 100 ग्राम

लाल सिंदूर 10 ग्राम बेल पत्र 108 पीस

हल्दी (पिसी) 50 ग्राम बेल फल 5 पीस

 50 ग्राम मदार के पत्ते 108 पीस

सुपाड़ी (समूची बड़ी) 100 ग्राम मदार के फूल 200 ग्राम

लौंग 10 ग्राम भांग 200 ग्राम

इलायची 10 ग्राम भांग का गोला 2 पीस

सर्वौषधि 1 डिब्बी धतूरा (फूल व फल) 200 ग्राम 7 पीस

सप्तमृत्तिका 1 डिब्बी शमी की पत्ती 10 ग्राम

सप्तधान्य 100 ग्राम गन्ना 1 पीस

पीली सरसों 50 ग्राम कमल का फूल 11 पीस

फलों का रस 500 ग्राम फूल, हार लड़ी (गुलाब) की 7 मी.

जनेऊ 5 पीस फूल, हार लड़ी (गेंदे) की 7 मी.

इत्र (सेंट स्प्रे) 1 शीशी गेंदा का खुला हुआ फूल 

गरी का गोला (सूखा) 1 पीस गुलाब का खुला हुआ फूल 

पानी वाला नारियल 1 पीस चाँदनी का खुला हुआ फूल 

अक्षत (चावल) 1 किलो नवरंग का खुला हुआ फूल 

धूपबत्ती 1 पैकेट सूरजमुखी के फूल (सफ़ेद/पीला) 

रुई की बत्ती (गोल / लंबी) 1-1 पै. तुलसी मंजरी 10 ग्राम

देशी घी 500 ग्राम गन्ने का रस 1 लीटर

सरसों का तेल 500 ग्राम दूध 2 लीटर

चमेली का तेल 1 शीशी दही 250 ग्राम

कपूर 20 ग्राम  

कलावा 5 पीस घर की ‘सामग्री’ ‘मात्रा’

चुनरी (लाल / पीली) 1/1 पीस आटा 100 ग्राम

मिश्री 500 ग्राम चीनी 500 ग्राम

रंग लाल 5 ग्राम अखंड दीपक (ढक्कन समेत) 1 पीस

रंग पीला 5 ग्राम तांबे/पीतल का कलश (ढक्कन समेत) 1 पीस

रंग काला 5 ग्राम थाली 7 पीस

रंग नारंगी 5 ग्राम लोटे 2 पीस

रंग हरा 5 ग्राम गिलास 7 पीस

रंग बैंगनी 5 ग्राम कटोरी 4 पीस

अबीर गुलाल (लाल, पीला, हरा, गुलाबी) अलग-अलग 10 ग्राम चम्मच 2 पीस

बुक्का (अभ्रक) 10 ग्राम परात 4 पीस

भस्म 100 ग्राम कैची/चाकू (लड़ी काटने हेतु) 1 पीस

गंगाजल 10 लीटर टोकरी (फल-फूल रखने हेतु) 4 पीस

गुलाब जल 1 शीशी बाल्टी (दूध व जल के लिए) 2 पीस

केवड़ा जल 1 शीशी परात बड़ी (अभिषेक हेतु) 1 पीस

लाल वस्त्र 1 मी. हनुमंत ध्वजा हेतु बांस (छोटा/ बड़ा) 1 पीस

पीला वस्त्र 1 मी. गंगाजल शुद्ध जल (पूजन हेतु) 

सफेद वस्त्र 1 मी. गाय का गोबर 

हरा वस्त्र 1 मी. बिछाने का आसन 

नीला वस्त्र 1 मी. यजमान की गांठ बांधने हेतु ⤵️ 

झंडा हनुमान जी का 1 पीस चुनरी 1 पीस

चांदी का सिक्का 1 पीस अंगोछा 1 पीस

कुश (पवित्री) 4 पीस पूजा में रखने हेतु सिंदौरा 1 पीस

लकड़ी की चौकी 1 पीस  

रुद्राक्ष की माला 2 पीस (प्रतिमा – मूर्ति) ‘मात्रा’

दोना (छोटा – बड़ा) 1-1 पीस मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी(गीली वाली) 7 किलो

मिट्टी का कलश (बड़ा) 1 पीस शिव शंकर भगवान की प्रतिमा 1 पीस

मिट्टी का प्याला 11 पीस "इच्छा अनुसार भगवान शंकर माता पार्वती

 को वस्त्र उपहार भेंट करें" 

मिट्टी की दियाली 11 पीस पंचामृत व प्रसाद 

माचिस (लाइटर) 1 पैकेट ब्राह्मणों के लिए वरण सामग्री 

तिल 100 ग्राम धोती, 1

जौ 100 ग्राम कुर्ता, 1

गुड़ 200 ग्राम अंगोछा, 1

कमलगट्टा 100 ग्राम पंच पात्र, 1

शहद 50 ग्राम माला इत्यादि 1

पंचमेवा 200 ग्राम  

केसर 1 डिब्बी आचार्य = पंडित योगेश्वर महाराज  

पंचरत्न व पंचधातु 1 डिब्बी मोबाइल नंबर - 9198105141 🥏9198405141 

नाग नागिन चांदी के 1 पीस  

धोती पीली/लाल 1 पीस  

अंगोछा (पीला लाल सफेद) 3 पीस  

"सुहाग सामग्री – साड़ी, बिंदी, सिंदूर, चूड़ी, 

आलता, नाक की कील, पायल, इत्यादि"   

   

Thursday, September 14, 2023

Vishwakarma Pujan samagri PDF

विश्वकर्मा पूजन सामग्री ।। पंडित योगेश्वर महाराज ।। 9198405141

सामग्री

ग्राम/पैकेट 


सामग्री

ग्राम/पैकेट



रोली 

पीला अष्टगंध चंदन

लाल सिंदूर

पीला सिंदूर

हल्दी

बड़ी सुपारी

आटा

लौंग

जनेऊ

इलायची

इत्र / सेंट 

सूखा गोला

जटादार पानी वाला नारियल

धूपबत्ती 

अक्षत/चावल ,गेहूं

रुई की बत्ती

भीमसेनी कपूर

देसी घी

कलावा

लाल चुनरी

सफेद  टून

लाल पीला सफेद कपड़ा

सिंहासन लकड़ी की चौकी

दोना

मिट्टी का कलश

मिट्टी की दियाली

हवन कुण्ड

माचिस

आम की लकड़ी

नवग्रह समिधा

केसर

तिल

गुड़

जौ

शहद

पंचमेवा

ऋतु फल

दुध, दही

फूल,

दूब घास

तुलसी की पत्ते

फूलों की माला

दीपक



2 पैकेट

1 पैकेट 

1 पैकेट 

1 पैकेट

1 पैकेट

50 ग्राम 


25 ग्राम

   11

25 ग्राम

   2

   1

   5

   5

200 ग्राम 

1 पैकेट

50 ग्राम

500 ग्राम 

5 पैकेट

5 पीस

1.5 मी.

3 पीस

2


3

11

1

2

5 kg

2 पैकेट

1

50 ग्राम

50 ग्राम

10 ग्राम

100 ग्राम

100 ग्राम

5

1 पैकेट

250


21


अबीर गुलाल (लाल,पीला,हरा रंग)


पान के पत्ते (शुद्ध व साबुत)


पंच पल्लव, (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)


आम के पत्ते

हवन सामग्री


दो लोटा दो चम्मच दो कटोरी

तीन थाली


विश्वकर्मा जी की फोटो


विश्वकर्मा जी को अर्पित करने हेतु वस्त्र अस्त्र


प्रसाद के लिए मिठाई

नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि)



पंडित जी के लिए धोती कुर्ता इच्छा अनुसार वस्त्र भेंट करें


3 पैकेट


11






 250 ग्राम 









Thursday, June 29, 2023

रूद्राष्टाध्यायी PDF book download

 

'रूद्राष्टाध्यायी' प्रथमो अध्यायः

श्रीमन्महाँ गणाधिपतये नमः । श्री मृत्युंजय देव नमः । हरिहि ॐ गणानान्त्वा गणपति गँ हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति गुँ हवामहे निधीनान्त्वा निधिपति गुँ हवामहे वसोमम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् । 1 । गायत्री त्रिष्टुब्जगत्य नुष्टुप पंक्त्यासह । बृहत्युष्णिहा ककुप्सूचीभिहि शम्यन्तत्त्वा । 2 । द्विपदा जाश्चतुख्पदा स्त्रिपदा जाश्च खटपदाहा । विच्छन्दा जाश्च सच्छन्दाहा सूचीभिहि शम्यन्तुत्त्वा ॥ 3 ॥

सहस्तोमाहा सहछन्दस आवृतह सहप्रमा ऋखयह सप्त दैव्याहा पूर्वेखाम पन्था मनुदृश्य धीरा अन्वालेभिरे रत्थ्यो न रश्मीन् ।4। जज्जाग्रतो दूर मुदैति दैवन्तदु सुप्तस्य तथै वैति । दूरन्गमन्ज्योतिखान ज्योतिरेकन्तन्मेमनह शिव संकल्प मस्तु | 5 | जेन कर्माण्य पसो मनीखिणो जग्न्ये कृण्वन्ति विदथेखु धीराहा । जदपूर्वन् जक्षमन्तह प्रजानान्तन्मे मनह शिव संकल्प मस्तु |6| जत्प्रग्न्यान मुत चेतो धृतिश्च जज्योतिरन्तर मृतम् प्रजासु । जस्मान्न ऋते किंचन कर्मि क्रियते तन्मे मनह शिव संकल्प मस्तु ।7।जेनेदम् भूतम् भुवनम् भविख्यत् परि गृहीत म्मृतेन सर्वम् । जेन जग्न्यस्ता यते सप्त होता तन्मे मनह शिव संकल्प मस्तु ॥8। जस्मिन्नृचह सामजजू गुँ खि जस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभावि वाराहा ।

जस्मिन्श्चित्त गुँ सर्वमोतम् प्रजानान्तन्मे मनह शिव संकल्प मस्तु ।9। सुखा रथि रश्वानिव जन्मनुख्यान्ने नीयते भी सुभिर्वाजिन इव । हृत्प्रतिष्ठन्जदजिरन जविष्ठन्तन्मे मनह शिव संकल्प मस्तु ।10।

। इति रूद्रपाठे प्रथमोध्याय : ।

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द्वितीयो अध्यायः


हरिहि ॐ सहस्रशीर्खा पुरूखह सहस्राक्षह सहस्रपात् । स भूमि गुँ सर्वतस पृत्वात्यतिष्ठद दशागुँलम् । 11 पुरूख एवेद गुँ सर्वन्जदभूतन्जच्च भाव्यम् । उता मृतत्वस्येशानो जदन्ने नाति रोहति । 2 । एता वानस्य महिमातो ज्यायान्श्च पुरूखह। पादोस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्या मृतन्दिवि । 3 । त्रिपा दूर्ध्व उदैत्पुरूखह पादो स्येहा भवत्पुनह । ततो विख्वन्व्यक्रामत्सा शनान शने अभि । 4 ।

ततो विराड जायत विराजो अधि पुरूखह । सजातो अत्य रिच्यत पश्चाद् भूमि मथो पुरह | 5 | तस्माद्यगन्यात्सर्व हुतह सम्भृतम पृख दाज्यम् । पशूंन्स्ताँन्श्चक्रे वायव्या नारण्या ग्राम्याश्च जे 16 । तस्मा द्यग्न्यात्सर्व हुत ऋचह सामानि जग्न्यिरे । छनदा गुँ सि जग्न्यिरे तस्माद्यजुस तस्मादजायत । 7 । तस्मा दश्वा अजायन्त जे के चोभया दतह ।

गावो ह जग्न्यिरे तस्मात तस्माज्जाता अजावयह। 8 ।

तन्जग्न्यम् बर्हिखि प्रौक्षन् पुरूखन्जात मग्रतह। तेन देवा अयजन्त साध्या ऋखयश्च जे 19 । जत्पुरुखम् व्यदधुहु कतिधा व्यकल्पयन् । मुखम् किमस्या सीतकिम बाहू किमूरू पादा उच्येते ।10। ब्राह्मणोस्य मुखमासीद् बाहू राजन्ह्यह कृतह । उरू तदस्य जद वैश्यह पदभ्या गुँ शूद्रो अजायत । 11 । चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोहो सूर्जी अजायत । श्रोत्राद् वायुश्च प्राणश्च मुखा दग्निर जायत ।12।नाभ्या आसी दन्तरिक्ष गुँ शीष्र्णो द्यौहु समवर्तत । पद्भ्याम् भूमिर्दिशह श्रोत्रात तथा लोकाँउ अकल्पयन् ।13। जत्पुरूखेण हविखा देवा जग्न्य मतन्वत । वसन्तो स्यासी दाज्यन्ग्रीख्म इध्मह शरद्विहि । 14 । सप्तास्या सन्न परिधयस्त्रिहि सप्त समिधह कृताहा । देवा जद्यग्न्यन्तन्वाना अबध्नन पुरुखम्पशुम् | 15 | जग्न्येन जग्न्यम यजन्त देवा स्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । ते हनाकम् महिमानह सचन्त जत्र पूर्वे साध्याहा सन्तिदेवाहा ।16।

नाभ्या आसी दन्तरिक्ष गुँ शीष्र्णो द्यौहु समवर्तत । पद्भ्याम् भूमिर्दिशह श्रोत्रात तथा लोकाँउ अकल्पयन् ।13। जत्पुरुखेण हविखा देवा जग्न्य मतन्वत । वसन्तो स्यासी दाज्यन्ग्रीख्म इध्मह शरद्विहि । 14 | सप्तास्यासन्न परिधयस्त्रिहि सप्त समिधह कृताहा । देवा जद्यग्न्यन्तन्वाना अबध्नन पुरूखम्पशुम् | 15 | जग्न्येन जग्न्यम यजन्त देवा स्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । ते हनाकम् महिमानह सचन्त जत्र पूर्वे साध्याहा सन्तिदेवाहा ।16।अद्भ्यह सम्भृतह पृथिव्यै रसाच्च विश्व कर्मणह समवर्तताग्रे । तस्य त्वष्टा विद्धद्रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे।17। वेदाह मेतम पुरूखम् महान्त मादित्य वर्णन्तमसह परस्तात् । तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यह पन्था विद्यतेय नाय । 18 । प्रजा पतिश्चरति गर्भे अन्तर जाय मानो बहुधा वि जायते । तस्यजोनिम् परिपश्यन्ति धीरास्तस्मिन्नह तस्थुर्भुवनानि विश्वा । 19 । जो देवेभ्य आतपति जो देवानाम् पुरोहितह । पूर्वी जो देवेभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये । 20।रूचम् ब्राह्मन जनयन्तो देवा अग्रे तद ब्रुवन् । जस्त्वैवम ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन् वशे । 21 । श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पल्या वहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूप मश्विनौ व्यात्तम् । इष्णन्नि खाणा मुम्म इखाण सर्वलोकम्म इखाण । 22 ।

। इति रूद्रपाठे द्वितीयोध्यायः ।


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तृतीयो अध्यायः

हरिहि ॐ आशुहु शिशानो वृखभो न भीमो घना घनह क्षोभणश्चर्खणी नाम् । सन्क्रन्दनो निमिख एक वीरह शत गुँ सेना अजयत् साकमिन्द्रह । 1 । सन्क्रन्दनेना निमिखेण जिष्णुना जुत्कारेण दुश्च्यव नेन धृष्णुना । तदिन्द्रेण जयत तत सहध्वम् जुधोनर इखु हस्तेन वृष्णा | 2 | स इखुहस्तैहि स निखंगिभिर्वशीस गुँ स्रष्टा सयुध इन्द्रोगणेन । स गुँ सृष्ट जित्सोमपा बाहु शर्ध्यग्र धन्वा प्रतिहिता भिरस्ता । 3 ।बृहस्पते परिदीया रथेन रक्षोहा मित्राउँ अपबाध मानह । प्रभन्जन्त्सेनाहा प्रमृणोजुधा जयन्नस्माक मेध्यविता रथानाम् ।4। बल विग्न्याय स्थविरह प्रवीरह सहस्वान् वाजी सहमान उग्रह । अभिवीरो अभिसत्त्वा सहोजा जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोवित् 15 | गोत्रभिदन्गोविदम् वज्रबाहुन्जयन्त मज्म प्रमृणन्त मोजसा । इम गुँ सजाता अनुवीरयध्वमिन्द्र गुँ सखायो अनुस गुँ रभध्वम् ॥6॥ अभि गोत्राणि सहसा गाहमानो दयो वीरह शतमन्यु रिन्द्रह । दुश्च्यव नह पृतनाखाड युध्योस्माक गुँ सेना अवतु प्रयुत्सु । 7 ।

इन्द्र आसान्नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा जग्न्यह पुरएतु सोमह । देवसेना नामभि भन्जतीनान्जयन्तीनाम् मरुतो जन्त्वग्रम् ॥8॥ इन्द्रस्य वृष्णो वरूणस्य राग्न्य आदित्यानाम् मरूता गुँ शर्ध उग्रम् । महामनसाम् भुवन च्यवानान्घोखो देवानान्जयता मुदस्थात् 19 । उद्धर्खय मघवन नायुधान युत्सत्वनाम् मामकानाम् मना गुँ सि । उदवृत्रहन्न वाजिनाम् वाजिनान् युदथानान् जयतान्जन्तु घोखाहा ।101 अस्माक मिन्द्रह समृतेखु ध्वजेख्वस्माकन्जा इखवस्ता जयन्तु । अस्माकम वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँउ उदेवा अवता हवेखु । 11

अमीखान्चित्तम् प्रतिलोभ यन्ती गृहाणान गान्यप्वे परेहि। अभि प्रेहि निर्दह हृत्सु शोकै रन्धेना मित्रास्तमसा सचन्ताम् ।12। अवसृष्टा परापत शरव्ये ब्रह्म स गुँ शिते । गच्छा मित्रान् प्रपद्यस्व मामीखान्कन्चनोच्छिखह । 13 । प्रेता जयता नर इन्द्रो वह शर्म् जच्छतु । उग्रा वह सन्तु बाहवो ना धृख्या जथासथ ।14। असौ जा सेना मरूतह परेखामभ्यैति न ओजसा स्पर्ध माना । तांगूहत तमसाप व्रतेन जथामी अन्यो अन्यन्न जानन् ।15।

यत्र वाणाहा सम्पतन्ति कुमारा विशिखा इव । तन्न इन्द्रो बृहस्पतिरदितिहि शर्मजच्छतु विश्वाहा शर्मजच्छतु ।16 | मर्माणि ते वर्मणाच्छादयामि सोमस्त्वा राजामृतेनानु वस्ताम् । उरोर्वरीयो वरूणस्ते कृणोतु जयन्तन्त्वानु देवामदन्तु | 17 |

। इति रूद्रपाठे तृतीयोध्यायः ।

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चतुर्थो अध्यायः

हरिहि ॐ विभ्राडबृहत्पिबतु सोम्यम् मध्वायुरदधद्यगन्य पतावविहुतम्। वातजूतो जो अभिरक्षतित्मना प्रजाहा पुपोखपुरुधा विराजति । 1 । उदुत्यन्जात वेदसन्देवम् वहन्ति केतवह। दृशे विश्वाय सूर्जम् ॥2॥ जेना पावक चक्षसा भुरण्यन्तन्जनाँउ अनु। त्वम वरूण पश्यसि । 3 । दैव्या वध्वर्जूआगत गुँ रथेनसूर्जत्वचा मध्वाजग्न्य गुँ समन्जाथे । तम् प्रत्त्वनथायम वेनश्चित्रन देवानाम् ।4। तम् प्रत्त्वत्नथा पूर्वथाविश्वथे मथा ज्येष्ठतातिम बर्हिखद गुँ स्वर्विदम् । प्रतीचीनम् वृजनन्दोहसे धुनिमाशुन्जयन्त मनु यासु वर्धसे ।5। अयन्वेनश्चोद यत्पृश्नि गर्भा ज्योतिर्जरायु रजसो विमाने । इममपा गुँ संगमे सूर्जस्य शिशुन्न विप्रा मतिभीरिहन्ति ॥ 6 ॥ चित्रन्देवानामुद गादनीकन्चक्षुर्मित्रस्य वरूणस्याग्नेहे । आप्राद्यावापृथिवी अन्तरिक्ष गुँ सूर्ज आत्मा जगतस तस्थुखश्च ।7। आन इडाभिर्विदथे सुशस्ति विश्वानरह सविता देव एतु । अपि जथा जुवानो मत्सथा नो विश्वन्जगदभिपित्वे मनीखा ॥ 8 । जदद्य कच्च वृत्रहन्नुदगा अभि सूर्ज। सर्वन्तदिन्द्र ते वशे ।9। जदेद युक्तहरितह सधस्था दाददात्री वासस्तनुते सिमस्मै ।11। तरणिर्विश्व दर्शतो ज्योतिख्कृदसि सूर्ज । विश्वमाभासि रोचनम् ।10। तत्सूर्जस्य देवत्वन तन्महित्वम्मध्या कर्तोर्वितत गुँ संजभार । तन्मित्रस्य वरूणस्या भिचक्षे सूर्जो रूपन्कृणुते द्योरूपस्थे । अनन्तमन्य दुशदस्य पाजह कृष्ण मन्यद्धरितह सम्भरन्ति । 12 । बण्महाँउ असि सूर्ज बड़ादित्य महाँउ असि । महस्ते सतो महिमा पनस्यते द्धा देवमहाँउ असि ।13। बट सूर्ज श्रवसा महाँउ असि सत्रादेव महाँउ असि । मन्नहा देवानाम सूर्जह पुरोहितो विभु ज्योतिर दाभ्यम् ।14। श्रायन्त इव सूर्जम्विश्वे दिन्द्रयस्य भक्षत । वसूनि जाते जनमान ओजसा प्रति भागन्न दीधिम | 15 | अद्या देवा उदिता सूर्जस्य निर गुँ हसह पिपृता निर वद्यात् । तन्नो मित्रो वरुणो मा महन्ता मदितिहि । सिन्धुहु पृथिवी उत द्यौहौ ।16। आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन नमृतम् मर्त्यन्च । हिरण्य येन सविता रथेना देवो जाति भुवनानि पश्यन् ।17।

। इति रूद्रपाठे चतुर्थोध्यायः ।


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ॐ ह्रीं ॐ जूं सः भूर्भुवस्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुवः स्वरों जूं सः हौं ॐ !!


पंचमो अध्यायः


हरिहि ॐ ॐ भूहु ॐ भुवह ॐ स्वह ॐ नमस्ते रूद्र मन्यव उतो त इखवे नमह । वाहुभ्या मुत ते नमह । 1 ।

 जा ते रूद्र शिवा तनूर घोरा पाप काशिनी । तया नस्तन्वा शन्त मया गिरि शन्ताभि चाकशीहि । 2 ।

 जामिखुगिरि शन्त हस्ते विभस्तवे । शिवान्गिरित्र तान्कुरूमा हि गुँ सीही पुरूखन्जगत् ॥ 3 ।

 शिवेन वचसा त्वा गिरि शाच्छा वदा मसि । जथा नह सर्वमिज्जगद यक्ष्म गुँ सुमना असत् ॥ 4 ॥ 

अध्यवोच दधि वक्ता प्रथमो दैव्यो भिखक । अहीन्श्च सर्वान्जम्भयन्त् सर्वाश्च जातुधान्यो धराचीही परासुव 5 |

 असौ जस्ताम्रो अरूण उत बभ्रुहु सुमंगलह । जे चैन गुँ रूद्रा अभितो दिक्षु श्रिताहा सहस्रशो वैखा गुँ हेडईमहे ।6। 

असौ जोव सर्पति नीलग्रीवो विलोहितह |उतैनन्गोपा अदृश्रन्न दृश्रन्नु दहार्जह स दृष्टो मृडयाति नह । 7 ।

 नमोस्तु नीलग्रीवाय सहश्राक्षाय मीदुखे । अथो जे अस्य सत्वानो हन्तेभ्यो करन्नमह ॥ 8 । 

प्रमुन्च धन्वनस्त्व मुभयो रायोंर्ज्याम् । जाश्च ते हस्त इखवह पराता भगवो वप | 9 | 

विज्यन्धनुहु कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ उत । अनेशन्नस्य जा इखव आभुरस्य निखंगधिहि । 10 । 

जा ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुहु । तयास्मान विश्वतस त्वम यक्ष्मया परिभुज ।11। 

परि ते धन्वनो हेति रस्मान्वृणक्तु विश्वतह | अथो ज इखुधिस्त वारे अस्मन्नि धेहितम् । 12 । 

अवतत्य धनुष्ट्व गुँ सहस्त्राक्ष शतेखुधे । निशीर्ज शल्यानाम्मुखा शिवो नह सुमनाभव।13।


 नमस्त आयु धाया नातताय धृष्णवे । उभाभ्या मुत ते नमो बाहुभ्यान्तव धन्वने।14।


 मानो महान्तमुत मानो अर्भकम्मान उक्षन्तमुत मान उक्षितम् । मानो वधीही पितरम्मोत मातरम्मानह प्रियास्तन्वो रुद्ररीरिखह | 15 | 


मा नस्तोके तनये मा न आयुखि मानो गोखु मानो अश्वेखु रीरिखह । मानो वीरान्न रूद्र भामिनो वधीरि हविख्मन्तह सदमित्वा हवामहे । 16 ।


नमो हिरण्य बाहवे सेनान्ये दिशांच पतये नमो नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यह पशूनाम्पतये नमो नमह शख्पिंजराय त्विखीमते पथीनाम्पतये नमो नमो हरि केशायोप वीतिने पुष्टानाम्पतये नमो नमो बलुशाय ।17।


नमो बभ्लुशाय व्याधिनेन्ना नाम्पतये नमो नमो भवस्य हेत्यै जगताम्पतये नमो नमो रुद्राया ततायिने क्षेत्राणाम्पतये नमो नमह सूताया हन्त्यै वनानाम्पतये नमो नमो रोहिताय । 18।


नमो रोहिताय स्थपतये वृक्षाणाम्पतये नमो नमो भुवन्तये वारि वस्कृता यौखधीनाम्पतये नमो नमो मन्त्रिणे वाणिजाय कक्षाणाम्पतये नमो नम उच्चैर्घोखाया क्रन्दयते पत्तीनाम्पतये नमो नमह कृत्स्नायतया । 19 ।


नमह कृत्स्नायतया धावते सत्वनाम्पतये नमो नमह सह मानाय निव्याधिन आव्या धिनीनाम्पतये नमो नमो निखन्गिणे ककुभाय स्तेनानाम्पतये नमो नमो निचेरवे परिचराया रण्यानाम्पतये नमो नमो वंचते ॥ 20 ॥


नमो वंचते परिवंचते स्तायूनाम्पतये नमो नमो निखंगिण इखुधि मते तस्कराणाम्पतये नमो नमह सृकायिभ्यो जिघा गुँ सद्भ्यो मुष्णताम्पतये नमो नमो सिमद्भ्यो नक्तन्चर द्भ्यो


विकृन्तानाम्पतये नमह । 21 ।

नम उष्णी खिणे गिरिचराय कुलुन्चानाम्पतये नमो नम

इखुमद्भ्यो धन्वायिभ्यश्च वो नमो नम आतन्वानेभ्यह प्रतिदधानेभ्यश्च वो नमो नम आयच्छद्भ्यो स्वद्भ्यश्च वो नमो नमो विसृजद्भ्यह । 22 ।


नमो विसृजद्भ्यो विध्यभ्यश्च वो नमो नमह स्व पदभ्यो जाग्रद्भ्यश्च वो नमो नमह शयानेभ्य आसीनेभ्यश्च वो नमो नमस्तिष्ठ द्भ्यो धावद्भ्यश्च वो नमो नमह सभाभ्यह। 23 । 

नमह सभाभ्यह सभापति भ्यश्च वो नमो नमोश्वेभ्यो श्व पतिभ्यश्च वो नमो नम आव्याधिनीभ्यो विविध्यन्ती ब्भ्यश्च वो नमो नम उगणाभ्यस्तृ गुँ हतीभ्यश्च वो नमो नमो गणेभ्यह। 24।


नमो गणेभ्यो गणपति भ्यश्च वो नमो नमो व्रातेभ्यो

व्रातपति भ्यश्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्स पतिभ्यश्च वो नमो नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपे भ्यश्च वो नमो नमह सेनाभ्यह | 25 | 


नमह सेनाभ्यह सेनानि भ्यश्च वो नमो नमो रथिब्भ्यो अरथेभ्यश्च वो नमो नमह क्षत्तृब्भ्यह सन्ग्रहीतृभ्यश्च वो नमो नमो महदभ्यो अर्भके भ्यश्च वो नमह | 26 |


 नमस्तक्षभ्यो रथकारे भ्यश्च वो नमो नमह कुलालेभ्यह कर्मारेभ्यश्च वो नमो नमो निखादे भ्यह पुन्जिष्ठे भ्यश्च वो नमो नमह श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमो नमह श्वभ्यह । 27 ।


नमह श्वभ्यह श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रूद्राय च नमह शर्वाय च पशुपतये च नमो नील ग्रीवाय च शिति कण्ठाय च नमह कपर्दिने 28


नमह कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमह सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मीढुष्टमाय चेखुमते च नमो ह्रस्वाय 29


नमो ह्रस्वाय च वामनाय च नमो बृहते च वर्खीयसे च नमो वृद्धाय च सवृधे च नमोग्रयाय च प्रथमाय च नम आशवे | 30 |


नम आशवे चा जिराय च नमह शीघ्याय च शीभ्याय च नम ऊर्म्याय चा वस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च ।31।


 नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमह पूर्वजाय चापरजाय च नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुध्न्याय च नमह सोभ्याय  32


नमह सोभ्याय च प्रतिसर्जाय च नमो जाम्याय चक्षेम्याय च नमह श्लोक्याय चावसान्याय च नम उर्वज्र्जाय च खल्याय च नमो वन्याय । 33 |


 नमो वन्याय च कक्ष्याय च नमह श्रवाय च प्रतिश्रवाय च नम आशुखेणाय चाशुरथाय च नमह शूराय चाव भेदिने च नमो बिल्मिने । 34 |


नमो बिल्मिने च कवचिने च नमो वर्मिणे च वरूथिने च नमह श्रुताय च श्रुत सेनाय च नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय च नमो धृष्णवे ॥35॥


नमो धृष्णवे च प्रमृशाय च नमो निखन्गिणे चेखुधिमते च

नमस्तीक्ष्णे खवे चायुधिने च नमह स्वायुधाय च सुधन्वने च । 36 ।


नमह श्रुत्याय च पथ्याय च नमह काट्टयाय च नीप्याय च नमह कुल्याय

च सरस्याय च नमो नादेयाय च वैशन्ताय च नमह कूप्याय । 37 ।

नमह कूप्याय चावट्टयाय च नमो वीद्द्रयाय चातप्याय च नमो मेघ्याय च विद्युत्याय च नमो वर्ख्याय चावर्य्याय च नमो वात्याय  38 


| नमो | वात्याय च रेख्याय च नमो वास्तव्याय च वास्तुपाय च नमह सोमाय च रूद्राय च नमस्ताम्राय चारूणाय च नमह शंगवे | 39 | 


नमह शंगवे च पशुपतये च नम उग्राय च भीमाय च नमो ग्रे वधाय च दूरेवधाय च नमो हन्त्रे च हनीयसे च नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यो नमस्ताराय। 40।


 नमह शम्भवाय च मयो भवाय च नमह शंकराय च मयस्करायच नमह शिवाय च शिवतराय च । 41।


नमह पाजय चावार्जाय च नमह प्रत्तरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमह शष्याय च फेन्याय च नमह सिकत्याय । 42 । 


नमह सिकत्याय च प्रवाज्जाय च नमह कि गुँ शिलाय च क्षयणाय च नमह कपर्दिने च पुलस्तये च नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च नमो व्रज्याय 43


नमो व्रज्याय च गोष्ठयाय च नमस्तल्प्याय च गेह्ज्जाय च नमो हृदज्जाय च निवेख्याय च नमह काट्टयाय च गह्वरेष्ठाय च नमह शुख्क्याय 44


नमह शुख्क्याय च हरित्याय च नमह पा गुँ सव्याय च रजस्याय च नमो लोप्याय चोलप्याय च नम ऊर्व्याय च सूर्व्याय च नमह पर्णाय । 45 । 


नमह पर्णाय च पर्णशदाय च नम उद्गुर माणाय चाभिघ्नते च नम आखिदते च प्रखिदते च नम इखुकृदभ्यो धनुख्कृदभ्यश्चवो नमो नमो वह किरिकेब्भ्यो देवाना गुँ हृदयेभ्यो नमो विचिन्वत्केभ्यो नमो विक्षिणत्केभ्यो नम आनिर्हतेभ्यह । 46 ।


 द्वापे अन्ध सस्पते दरिद्रनील लोहित । आसां प्रजानामेखां पशूनाम्मा भेम्र्म्मा रोंमो च नह किंचनाममत्।47।


इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीही । जथा शमसद द्विपदे चतुख्यदे विश्वम्पुष्टन्ग्रामे अस्मिन ननातुरम।48।

 जाते रूद्र शिवा तनूहू शिवा विश्वाहा भेखजी । शिवा रूतस्य भेखजी तया नो मृडजीवसे ।49। 

परि नो रूद्रस्य हेतिर्वृणक्तु परित्वे खस्य दुर्मतिर घायोहो । अवस्थिरा मघवद्भ्यस तनुख्व मीढवस्तोकाय तनयाय मृड 150 । 

मीढुष्टम शिवतम शिवो नह सुमना भव । परमे वृक्ष आयुधन निधाय कृत्तिम्वसान आचर पिनाकम् बिभ्रदा गहि |51|

विकिरिद्र विलोहित नमस्ते अस्तु भगवह । जास्ते सहस्त्र गुँ हेतयोन्य मस्मन निवपन्तु ताहा । 52 । 


सहस्राणि सहस्रशो बाहवोस्तव हेतयह। तासा मीशानो भगवह पराचीना मुखा कृधि l 53 l


 असन्ख्याता सहस्राणि जे रूद्रा अधि भूम्याम् । तेखा गँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि । 54 ।


 अस्मिन् महत्यर्णवे अन्तरिक्षे भवा अधि । तेखा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि l 55 l


नील ग्रीवाहा शितिकण्ठा दिव गँ रूद्रा उपश्रिताहा । तेखा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि l 56 l 


नीलग्रीवाहा शिति कण्ठाहा शर्वा अधह क्षमा चराहा । तेखा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि । 57 ।


 जे वृक्षेखु शख्पिन्जरा नीलग्रीवा विलोहिताहा । खा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि । 58 l 


जे भूतानामधिपतयो विशिखासह कपर्दिनह । तेखा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि । 59 ।


जे पथाम पथिरक्षय ऐलबृदा आयुर्जुधह । तेखा गुँ सहस्त्र योजनेव धन्वानि तन्मसि |60| 


जे तीर्थानि प्रचरन्ति सृका हस्ता निखन्गिणह । तेखा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि |61|


 जेन्नेखु विविध्यन्ति पात्रेखु पिवतो जनान् । तेखा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि l 62 । 


ज एतावन्तश्च भूया गँ सश्च दिशो रूद्रा वित स्थिरे । तेखा गुँ सहस्र योजने वधन्वानि तन्मसि l 63 |


नमोस्तु रूद्रेभ्यो जे दिवि जेखाम् वर्ख मिखवह। तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशो दीचीर्दशोर्ध्वाहा ।

नमोस्तु रूद्रेभ्यो जे दिवि जेखाम् वर्ख मिखवह। तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशो दीचीर्दशोर्ध्वाहा ।

तेभ्यो नमो अस्तु ते नोवन्तु तेनो मृडयन्तु ते जद्विख्मो जश्च नो द्वेष्टि तमेखान् जम्भे दध्मह l 64 l


नमोस्तु रूद्रेभ्यो जे अन्तरिक्षे जेखाम् वात इखवह।

तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशो दीचीर्दशोर्ध्वाहा ।

तेभ्यो नमो अस्तु ते नोवन्तु तेनो मृडयन्तु ते जद्विख्मो जश्च नो द्वेष्टि तमेखान् जम्भेदध्मह l 65 l


नमोस्तु रूद्रेभ्यो जे पृथिव्याम् जेखाम् अन्न मिखवह। तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशो दीचीर्दशोर्ध्वाहा । तेभ्यो नमो अस्तु ते नोवन्तु तेनो मृडयन्तु ते जद्विख्मो जश्च नो द्वेष्टि


तमेखान् जम्भेदध्मह। 66 ।।


ॐ स्वह ॐ भुवह ॐ भूहु ।


। इति रूद्रपाठे पंचमोध्याय ।


षष्टमो अध्यायः


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हरिहि ॐ वय गुँ सोमव्रते तव मनस्तनूखु बिभृतह प्रजावन्तह सचेमहि । 1। एख ते रूद्र भागह सह स्वस्त्राम्बिकया तन्जुखस्व स्वाहैख ते रूद्र भाग आखुस्ते पशुहु | 2 | अवरूद्रमदी मह्जव देवन्त्रयम्बकम् जथा नो वस्य सस्करद्यथानह श्रेयसस्करद्यथानो व्यवसाययात् । 3 । भेखजमसि भेखजं गवेश्वाय पुरुखाय भेखजम् सुखम्मेखाय मेख्यै ।4। त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम् ।

उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् । त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पतिवेदनम् उर्वारूकमिव

बन्धनादितोमुक्षीय मामुतह । 5 ।

एतत्ते रूद्रावसन्तेन परोमूजवतोतीहि । अवतत धन्वा पिनाकावसह कृत्तिवासा अहि गुँ सन्न्ह शिवोतीहि ।6। 

त्रयायुखं जमदग्नेहे कश्यपस्य त्रयायुखम् । जद्देवेखु त्र्यायुखंं तन्नो अस्तु त्र्यायुखम्।7।

शिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्ते अस्तु मामा हि गुँ सीही । निवर्त्तयाम्या युखेन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोखाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्जाय ॥8।


। इति रूद्रपाठे षष्टोध्याय ।


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सप्तमो अध्यायः


हरिहि ॐ उग्रश्च भीमश्च ध्वान्तश्च धुनिश्च । सासहवांश्चाभियुग्वा च विक्षिपह स्वाहा । 1 । अग्नि गँ हृदयेनाशनि गँ हृदयाग्रेण पशुपतिन्कृत्स्न हृदयेन भवन्जक्ना। शर्वं मत्सनाभ्या मीशानम् मन्युना महादेव मन्तह पर्श व्येनोग्रन्देवम् वनिष्ठुना वशिष्ठ हनुहु शिन्गीनि कोश्याभ्याम् । 2 । उग्रन्लोहितेन मित्र गुँ सौव्रत्येन रूद्रन दौव्रत्येनेन्द्रम् पक्रीडेन मरुतो बलेन साध्यान् प्रमुदा ।


भवस्य कण्ठय गुँ रूद्रस्यान्तह पाश्र्व्यम् महादेवस्य जकृच्छर्वस्य वनिष्ठुहु पशुपतेहे पुरीतत् ॥3॥

लोमभ्यह स्वाहा लोमभ्यह स्वाहा त्वचे स्वाहा त्वचे स्वाहा । लोहिताय स्वाहा लोहिताय स्वाहा मेदोभ्यह स्वाहा मेदोभ्यह स्वाहा। मा गुँ सेभ्यह स्वाहा मा गुँ सेभ्यह स्वाहा स्नावभ्यह स्वाहा स्नावभ्यह स्वाहा स्थभ्यह स्वाहा स्थभ्यह स्वाहा मज्जभ्यह स्वाहा मज्जभ्यह स्वाहा । रेतसे स्वाहा पायवे स्वाहा ।4। आयासाय स्वाहा प्रायासाय स्वाहा सन्जासाय स्वाहा वियासाय स्वाहोद्या साय स्वाहा। शुचे स्वाहा शोचते


स्वाहा शोचमानाय स्वाहा शोकाय स्वाहा 15 |

तपसे स्वाहा तप्यते स्वाहा तप्यमानाय स्वाहा तप्ताय स्वाहा

घर्मायस्वाहा। निष्कृत्यैस्वाहा प्रायश्चित्यैस्वाहा भेखजाय स्वाहा ।6।

जमाय स्वाहान्तकाय स्वाहा मृत्यवे स्वाहा । ब्रह्मणे स्वाहा ब्रह्म

हत्यायै स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यह स्वाहा द्यावा पृथिवीभ्या गँ स्वाहा ।7।


। इति रूद्रपाठे सप्तमोध्याय ।


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अष्टमो अध्यायः


हरिहि ॐ वाजश्च मे प्रसवश्च मे प्रयतिश्च मे प्रसितिश्च मे धीतिश्च मे क्रतुश्च मे स्वरश्च मे श्लोकश्च मे श्रवश्च मे श्रुतिश्च मे ज्योतिश्च मे स्वश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।1। प्राणश्च मे पानश्च मे व्यानश्च मे सुश्च मे चित्तन्च म आधीतन्च मे वाक च मे मनश्च मे चक्षुश्च मे श्रोत्रन्च मे दक्षश्च मे बलन्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।2। ओजश्च मे सहश्च म आत्मा च मे तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मे अन्गानि च मे स्थीनि च मे परू गुँ खिन्च मे शरीराणि च म आयुश्च मे जरा च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ॥3।

ज्यैश्ठयन्चम आधिपत्यन्च मे मन्युश्च मे भामश्च मे मश्च मे अम्भश्च च


मे जेमा च मे महिमा च मे वरिमा च मे प्रथिमा च मे वर्खिमा च मे द्राघिमा च मे वृद्धन्च मे वृद्धिश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।4। । न। पंचम अध्याय का पुनह पाठ । पेज संख्या 66 से 77 तक । सत्यन्च मे श्रद्धा च मे जगच्च मे धनन्च मे विश्वन्च मे महश्च मे क्रीडा च मे मोदश्च मे जातन्च मे जनिख्यमाणन्च मे सूक्तन्च मे सुकृतन्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ॥5॥


ऋतन्च मे मृतन्च मे यक्ष्मन्च मे नाम यच्च मे जीवातुश्च मे दीर्घायुत्वन्च मे नमित्रन्च मे भयन्च मे सुखन्च मे शयनन्च मे सूखाश्च मे सुदिनन्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ॥6॥

जन्ता च मे धर्त्ता च मे क्षेमश्च मे धृतिश्च मे विश्वन्च मे महश्च मे संविच्च मे ग्न्यात्रन्च मे सूश्च मे प्रसूश्च मे सीरन्च मे लयश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम्।7। शन्च मे मयश्च मे प्रियन्च मे नुकामश्च मे कामश्च मे सौमन सश्च मे भगश्च मे द्रविणन्च मे भद्रन्च मे श्रेयश्च मे वसीयश्च मे जशश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।8।। न। पंचम अध्याय का पुनह पाठ। पेज संख्या 66 से 77 तक ।


ऊर्क च मे सूनृता च मे पयश्च मे रसश्च मे घृतन्च मे मधु च मे सग्धिश्च मे सपीतिश्च मे कृखिश्च मे वृष्टिश्च मे जैत्रन्च म औदिभद्यन्च मे


जग्न्येन कल्पन्ताम् ।9।

रयिश्च मे रायश्च मे पुष्टन्च मे पुष्टिश्च मे विभु च मे प्रभु च मे पूर्णन्त्र मे पूर्णतरन्च मे कुयवन्च मे क्षितन्च मे अन्नन्च मे क्षुच्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।10।


वित्तन्च मे वेद्यन्च मे भूतन्च मे भविख्यच्च मे सुगन्च मे सुपथ्यन्च म ऋद्धन्च म ऋद्धिश्च मे क्लृप्तन्च मे क्लृप्तिश्च मे मतिश्च मे सुमतिश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।11। व्रीहयश्च मे जवाश्च मे माखाश्च मे तिलाश्च मे मुदगाश्च मे खल्वाश्च मे प्रियंगवश्च मे ण वश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् । 12 । न पंचम अध्याय का पुनह पाठ | पेज संख्या 66 से 77 तक ।

अश्मा च मे मृतिका च मे गिरयश्च मे पर्वताश्च मे सिकताश्च मे वनस्पतयश्च मे हिरण्यन्च मे यश्च मे श्यामन्च मे लोहन्च मे सीसन्च मे त्रपु च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् । 13 अग्निश्च म आपश्च मे वीरूधश्च म औखधयश्च मे कृष्टपच्याश्च कृष्टपच्याश्च मे ग्राम्याश्च मे पशव आरण्याश्च मे वित्तन्च मे वित्तिश्च मे भूतन्च मे भूतिश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।14। वसु च मे वसतिश्च मे कर्म च मे शक्तिश्च म अर्थश्च म एमश्चम इत्या च मे गतिश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।15।। न। पंचम अध्याय का पुनह पाठ । पेज संख्या 66 से 77 तक ।

अ गुँ शुश्च मे रश्मिश्च मे दाभ्यश्च मे धिपतिश्च म उपा गुँ शुश्च मे KINE अन्तर्जामश्च म ऐन्द्र वायवश्च मे मैत्रा वरूणश्च म आश्विनश्च मे प्रतिप्रस्थानश्च मे शुक्रश्च मे मन्थीच मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।19। आग्रयणश्च मे वैश्वदेवश्च मे ध्रुवश्च मे वैश्वानरश्च म ऐन्द्राग्नश्च मे महावैश्वदेवश्च मे मरूत्वतीयाश्च मे निख्केवल्यश्च मे सावित्रश्च मे सारस्वतश्च मे पात्क्नीवतश्च मे हारियोजनश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ।20।

स्रुचश्च मे चमसाश्च मे वायव्यानिच मे द्रोणकलशश्च मे ग्रावाणश्च मे धिखवणे च मे पूतभृच्च म आधवनीयश्च मे वेदिश्च मे बर्हिश्च मे अवभृथश्च मे स्वागाकारश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् । 21। । न । पंचम अध्याय का पुनह पाठ । पेज संख्या 66 से 77 तक । अग्निश्च मे घर्मश्च मे अर्कश्च मे सूर्जश्च मे प्राणश्च मे अश्वमेधश्च मे पृथिवी च मे दितिश्च मे दितिश्च मे द्यौश्च मे अगुंलयह शक्वरयो दिशश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् ॥22॥ व्रतन्च मे ऋतवश्च मे तपश्च मे संवत्सरश्च मे अहोरात्रे ऊर्वष्ठीवे बृहद्रथन्तरे च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् । 23 ।


। न। पंचम अध्याय का पुनह पाठ । पेज संख्या 66 से 77 तक ।

का च मे तिस्रश्च मे तिस्रश्च मे पन्च च मे पन्च च मे सप्त च मे सप्त च नवच मे नवच म एकादश च म एकादश च मे त्रयोदश च मे त्रयोदश च मे पंचदश च मे पंचदश च मे सप्तदश च मे सप्तदश च मे नवदश च मे नवदश च म एकवि गुँ शतिश्च म एकवि गुँ शतिश्च मे त्रयोवि गुँ शतिश्च मे मेत्रयोवि गुँ शतिश्च मे पचंवि गुँ शतिश्च मे पचंवि गुँ तिश्च मे सप्तवि गुँ शतिश्च मे सप्तवि गुँ शतिश्च मे नववि गुँ शतिश्च मे नववि गुँ शतिश्च म एकत्रि गुँ शच्च म एकत्रि गुँ शच्च मे त्रयस्त्रि गुँ शच्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् । 24।


। न। पंचम अध्याय का पुनह पाठ । पेज संख्या 66 से 77 तक ।


चतस्त्रश्च मे अष्टौ च मे अष्टौ च मे द्वादश च मे द्वादश च मे खोडश च मे खोडश च मे वि गुँ शतिश्च मे वि गुँ शतिश्च मे चुर्तवि गुँ शतिश्च मे चुर्तवि गुँ शतिश्च मे अष्टावि गुँ शतिश्च मे अष्टावि गुँ शतिश्च मे द्वात्रि गँ शच्च मे द्वात्रि गुँ शच्च मे खटत्रि गुँ शच्च मेखटत्रि गुँ शच्च मे चत्वारि गँ शच्च मे चत्वारि गँ शच्च मे चतुश्चत्वारि गुँ शच्च मे चतुश्चत्वारि गुँ


शच्च मे अष्टाचत्वारि गुँ शच्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् । 25। । न । पंचम अध्याय का पुनह पाठ । पेज संख्या 66 से 77 तक । त्रयविश्च मे त्रयवी च मे दित्यवाट च मे दित्यौही च मे पन्चाविश्च मे पन्चावी च मे त्रिवत्त्सश्च मे त्रिवत्त्सा च मे तुर्जवाट् च मे तुर्जीही च मे


जग्न्येन कल्पन्ताम् | 26 |

पष्ठवाट् च मे पष्ठौही च म उक्षा च मे वशा च म ऋखभश्च मे वेहच्च मे अंड्वानश्च मे धेनुश्च मे जग्न्येन कल्पन्ताम् । 27 ।


। न। पंचम अध्याय का पुनह पाठ । पेज संख्या 66 से 77 तक । वाजाय स्वाहा प्रसवाय स्वाहा पिजाय स्वाहा क्रतवे स्वाहा वसवे स्वाहा अहर्पतये स्वाहान्ने मुग्धाय स्वाहा मुग्धाय वैन गुँ शिनाय स्वाहा विन गँ शिन आन्त्यायनाय स्वाहा आन्त्याय भौवनाय स्वाहा भुवनश्य पतये स्वाहा अधिपतये स्वाहा प्रजापतये स्वाहा । इयन्ते राणिमत्राय जन्तासि जमन ऊर्जे त्वा वृष्टये त्वा प्रजानान्त्वा आधिपत्याय । 28।


आयुर्जग्न्येन कल्पताम् प्राणोजग्न्येन कल्पतान् चक्षुर्जग्न्येन कल्पता गुँ श्रोत्रन् जग्न्येन कल्पताम् वाग्जग्न्येन कल्पताम् मनो जग्न्येन कल्पताम् आत्मा जग्न्येन कल्पताम् ब्रह्मा जग्न्येन कल्पतान् ज्योतिर्जग्येन कल्पता गुँ स्वर्जग्न्येन कल्पताम् पृष्ठन् जग्न्येन कल्पतान जग्न्यो जग्न्येन कल्पताम् । स्तोमश्च जजुश्च ऋक् च साम च वृहच्च रथन्तरन्च । स्वर्देवा अगन्मामृता अभूम प्रजापतेहे प्रजा अभूम वेट स्वाहा | 29 ।


। इति रूद्रपाठे अष्टमोध्याय ।


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शान्ति अध्याय


हरिहि ॐ ऋचम् वाचम् प्रपद्ये मनो जजुहु प्रपद्ये साम प्राणम् प्रपद्ये चक्षुहु श्रोत्रम् प्रपद्ये । वागोजह सहौजो मयि प्राणापानौ । 1 । जन्मे छिद्रन्चक्षुखो हृदयस्य मनसो वातितृष्णम् बृहस्पतिर्मे तद्दधातु । शन्नो भवतु भुवनस्य जस्पतिहि । 2 । भूर्भुवह स्वह तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नह प्रचोदयात् |3|


कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधह सखा । कया शचिष्ठया वृता । 4 । कस्त्वा सत्योमदानाम्म गँ हिष्ठो मत्सदन्धसह । दृढा चिदारूजे वसु 15 | अभीखुणह सखी नामविता जरितृणाम् । शतम्भवास्यूतिभिहि ।6।

कया त्वन्न ऊत्याभि प्रमन्दसे वृखन् । कया स्तोतृभ्य आभर ।7। इन्द्रो विश्वस्य राजति । शन्नो अस्तु द्विपदे शन्चतुष्पदे ॥ 8 । शन्नो मित्रह शम्वरूणह शन्नो भवत्वर्जमा । शन्न इन्द्रो बृहस्पतिहि शन्नो विष्णुरुरुक्रमह 19 । शन्नो वातह पवता गुँ शन्नस्तपतु सूर्जह। शन्नह कनिक्रदेवह पर्जन्यो अभिवर्खतु । 10 । अहानिशम्भवन्तु नह श गुँ रात्रीही प्रतिधीयताम् । शन्न इन्द्राग्नी भवताम् वोभिहि शन्न इन्द्रावरुणा रातहव्या । शन्न इन्द्रा पूखणा वाजसातौ शमिन्द्रा सोमा सुविताय शन्जोहो ।11। शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शन्जो रभि स्रवन्तुनह । 12 ।

स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी । जच्छा नह शर्मसप्रथाहा । 13 । आपो हिष्ठा मयोभुवस्तान ऊर्जे दधातन । महे रणाय चक्षसे।14। जो वह शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेहनह उशतीरिव मातरह।15। तस्मा अरन्गमाम वो जस्यक्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नह । 16 । द्यौ शान्तिरन्तरिक्ष गुँ शान्तिहि पृथिवी शान्तिरापह शान्तिरौखधयह शान्तिहि । वनस्पतयह शान्तिर्विश्वे देवाहा ञ्जान्तिर्ब्रह्म शान्तिहि सर्व गुॅं शान्तिहि शान्तिरेव शान्तिहि सामा शान्तिरेधि ।17। दृते दृ गुँ ह मा मित्रस्य मा चक्षुखा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् मित्रस्याहं चक्षुखा सर्वाणि भूतानि समीक्षे । मित्रस्य चक्षुखा समीक्षामहे | 18 | दृते दृ गुँ हमा ज्योक्ते सन्दृशि जीव्यासन्ज्योक्ते सन्दृशि जीव्यासम् ।19। नमस्ते हरसे शोचिखे नमस्ते अस्त्वर्चिखे । अन्यांस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयह पावको अस्मभ्य गुँ शिवो भव | 20 | नमस्ते अस्तु विद्युते नमस्ते स्तनयित्नवे । नमस्ते भगवन्नस्तु जतह स्वह समीहसे । 21 । जतो यतह समीहसे ततो नो भयन्कुरू । शन्नह कुरू प्रजाभ्यो भयन्न पशुभ्यह । 22 ।

सुमित्रिया न आप ओखधयह सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै । सन्तु जोअस्मान् द्वेष्टि जन्च वयन्द्विख्मह | 23 | तच्चक्षुर्देवहितम् पुरस्ताच्छुक्र मुच्चरत् । पश्येम शरदह शतन्जीवेम शरदह शत गुँ श्रृणुयामशरदह शतम्प्रब्रवाम शरदह शतमदीनाहा स्याम शरदह शतम्भूयश्च शरदह शतात् ॥24 ॥

 ॥ इति रूद्रपाठे शान्त्यध्यायः 

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विश्वकर्मा जी के 108 नाम

 भगवान विश्वकर्मा जी के 108 नाम उनके विभिन्न गुणों, क्षमताओं और दिव्यता को दर्शाते हैं। यहाँ विश्वकर्मा जी के 108 पवित्र नामों की सूची दी गई...